Pratidin Ek Kavita

सूर्य | नरेश सक्सेना

ऊर्जा से भरे लेकिन
अक्ल से लाचार, अपने भुवनभास्कर
इंच भर भी हिल नहीं पाते
कि सुलगा दें किसी का सर्द चुल्हा
ठेल उढ़का हुआ दरवाजा
चाय भर की ऊष्मा औ' रोशनी भर दें
किसी बीमार की अंधी कुठरिया में
सुना सम्पाती उड़ा था
इसी जगमग ज्योति को छूने 
झुलस कर देह जिसकी गिरी धरती पर
धुआँ बन पंख जिसके उड़ गए आकाश में
हे अपरिमित ऊर्जा के स्रोत
कोई देवता हो अगर सचमुच सूर्य तुम तो
क्रूर क्यों हो इस क़दर
तुम्हारी यह अलौकिक विकलांगता
भयभीत करती है।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

सूर्य | नरेश सक्सेना

ऊर्जा से भरे लेकिन
अक्ल से लाचार, अपने भुवनभास्कर
इंच भर भी हिल नहीं पाते
कि सुलगा दें किसी का सर्द चुल्हा
ठेल उढ़का हुआ दरवाजा
चाय भर की ऊष्मा औ' रोशनी भर दें
किसी बीमार की अंधी कुठरिया में
सुना सम्पाती उड़ा था
इसी जगमग ज्योति को छूने
झुलस कर देह जिसकी गिरी धरती पर
धुआँ बन पंख जिसके उड़ गए आकाश में
हे अपरिमित ऊर्जा के स्रोत
कोई देवता हो अगर सचमुच सूर्य तुम तो
क्रूर क्यों हो इस क़दर
तुम्हारी यह अलौकिक विकलांगता
भयभीत करती है।