Pratidin Ek Kavita

लकड़हारे की पीठ | अनुज लुगुन


जलती हुई लकड़ियों का
गट्ठर है मेरी पीठ पर

और तुम
मुझे बाँहों में भरना चाहती हो

मैं कहता हूँ—
तुम भी झुलस जाओगी

मेरी देह के साथ।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

लकड़हारे की पीठ | अनुज लुगुन

जलती हुई लकड़ियों का
गट्ठर है मेरी पीठ पर

और तुम
मुझे बाँहों में भरना चाहती हो

मैं कहता हूँ—
तुम भी झुलस जाओगी

मेरी देह के साथ।