Subscribe
Share
Share
Embed
कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
नज़र झुक गई और क्या चाहिए | फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़र झुक गई और क्या चाहिए
अब ऐ ज़िंदगी और क्या चाहिए
निगाह -ए -करम की तवज्जो तो है
वो कम कम सही और क्या चाहिए
दिलों को कई बार छू तो गई
मेरी शायरी और क्या चाहिए
जो मिल जाए दुनिया -ए -बेगाना में
तेरी दोस्ती और क्या चाहिए
मिली मौत से ज़िंदगी फिर भी तो
न की ख़ुदकुशी और क्या चाहिए
जहाँ सौ मसाइब थे ऐ ज़िंदगी
मोहब्बत भी की और क्या चाहिए
गुमाँ जिसपे है ज़िंदगी का 'फ़िराक़'
वही मौत भी और क्या चाहिए