Pratidin Ek Kavita

किवाड़ | कुमार अम्बुज

ये सिर्फ़ किवाड़ नहीं हैं 
जब ये हिलते हैं 
माँ हिल जाती है 
और चौकस आँखों से 
देखती है—‘क्या हुआ?’ 
मोटी साँकल की 
चार कड़ियों में 
एक पूरी उमर और स्मृतियाँ 
बँधी हुई हैं 
जब साँकल बजती है 
बहुत कुछ बज जाता है घर में 
इन किवाड़ों पर 
चंदा सूरज 
और नाग देवता बने हैं 
एक विश्वास और सुरक्षा 
खुदी हुई है इन पर 
इन्हें देख कर हमें 
पिता की याद आती है। 
भैया जब इन्हें
बदलवाने का कहते हैं
माँ दहल जाती है
और कई रातों तक पिता
उसके सपनों में आते हैं
ये पुराने हैं 
लेकिन कमज़ोर नहीं 
इनके दोलन में 
एक वज़नदारी है 
ये जब खुलते हैं 
एक पूरी दुनिया 
हमारी तरफ़ खुलती है 
जब ये नहीं होंगे 
घर 
घर नहीं रहेगा। 

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

किवाड़ | कुमार अम्बुज

ये सिर्फ़ किवाड़ नहीं हैं
जब ये हिलते हैं
माँ हिल जाती है
और चौकस आँखों से
देखती है—‘क्या हुआ?’
मोटी साँकल की
चार कड़ियों में
एक पूरी उमर और स्मृतियाँ
बँधी हुई हैं
जब साँकल बजती है
बहुत कुछ बज जाता है घर में
इन किवाड़ों पर
चंदा सूरज
और नाग देवता बने हैं
एक विश्वास और सुरक्षा
खुदी हुई है इन पर
इन्हें देख कर हमें
पिता की याद आती है।
भैया जब इन्हें
बदलवाने का कहते हैं
माँ दहल जाती है
और कई रातों तक पिता
उसके सपनों में आते हैं
ये पुराने हैं
लेकिन कमज़ोर नहीं
इनके दोलन में
एक वज़नदारी है
ये जब खुलते हैं
एक पूरी दुनिया
हमारी तरफ़ खुलती है
जब ये नहीं होंगे
घर
घर नहीं रहेगा।