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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
बारिश या पुण्यवर्षा | अरुणाभ सौरभ
धरती पर गिरती
बूँदें बारिश की
छोटी - छोटी
ये बूँद-बूँद गोलाइयाँ
धरती को चुंबन है
आकाश का
या धरती से
आकाश के
मिलने का सबूत
या प्यार है
मर मिटनेवाला
या प्यार की
सिफ़ारिश
ये बारिश है
या हृदय के
भीतर की
बची हुई करुणा
हमारे भीतर की
बची हुई मनुष्यता
पितरों के
पुण्य की
पुष्पवर्षा
इसी के सहारे
जीते हैं हम
इसे देखकर
जवान होते हैं