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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
उसका चेहरा | राजेश जोशी
अचानक गुल हो गयी बत्ती
घुप्प अँधेरा हो गया चारों तरफ
उसने टटोल कर ढूँढी दियासलाई
और एक मोमबत्ती जलाई
आधे अँधेरे और आधे उजाले के बीच
उभरा उसका चेहरा
न जाने कितने दिनों बाद देखा मैंने
इस तरह उसका चेहरा
जैसे किसी और ग्रह से देखा मैंने
पृथ्वी को !