Pratidin Ek Kavita

रेगिस्तान की रात है / दीप्ति नवल

रेगिस्तान की रात है
और आँधियाँ सी
बनते जाते हैं निशां
मिटते जाते हैं निशां

दो अकेले से क़दम
ना कोई रहनुमां
ना कोई हमसफ़र

रेत के सीने में दफ़्न हैं
ख़्वाबों की नर्म साँसें
यह घुटी-घुटी सी नर्म साँसें ख़्वाबों की
थके-थके दो क़दमों का सहारा लिए
ढूँढ़ती फिरती हैं
सूखे हुए बयाबानों में
शायद कहीं कोई साहिल मिल जाए

रात के आख़री पहर से लिपटे इन ख़्वाबों से
इन भटकते क़दमों से
इन उखड़ती सांसों से
कोई तो कह दो!
भला रेत के सीने में कहीं साहिल होते हैं।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

रेगिस्तान की रात है / दीप्ति नवल

रेगिस्तान की रात है
और आँधियाँ सी
बनते जाते हैं निशां
मिटते जाते हैं निशां

दो अकेले से क़दम
ना कोई रहनुमां
ना कोई हमसफ़र

रेत के सीने में दफ़्न हैं
ख़्वाबों की नर्म साँसें
यह घुटी-घुटी सी नर्म साँसें ख़्वाबों की
थके-थके दो क़दमों का सहारा लिए
ढूँढ़ती फिरती हैं
सूखे हुए बयाबानों में
शायद कहीं कोई साहिल मिल जाए

रात के आख़री पहर से लिपटे इन ख़्वाबों से
इन भटकते क़दमों से
इन उखड़ती सांसों से
कोई तो कह दो!
भला रेत के सीने में कहीं साहिल होते हैं।