Pratidin Ek Kavita

तब्दीली | अख़्तरुल ईमान

इस भरे शहर में कोई ऐसा नहीं
जो मुझे राह चलते को पहचान ले

और आवाज़ दे ओ बे ओ सर-फिरे
दोनों इक दूसरे से लिपट कर वहीं

गिर्द-ओ-पेश और माहौल को भूल कर
गालियाँ दें हँसें हाथा-पाई करें

पास के पेड़ की छाँव में बैठ कर
घंटों इक दूसरे की सुनें और कहें

और इस नेक रूहों के बाज़ार में
मेरी ये क़ीमती बे-बहा ज़िंदगी

एक दिन के लिए अपना रुख़ मोड़ ले

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

तब्दीली | अख़्तरुल ईमान

इस भरे शहर में कोई ऐसा नहीं
जो मुझे राह चलते को पहचान ले

और आवाज़ दे ओ बे ओ सर-फिरे
दोनों इक दूसरे से लिपट कर वहीं

गिर्द-ओ-पेश और माहौल को भूल कर
गालियाँ दें हँसें हाथा-पाई करें

पास के पेड़ की छाँव में बैठ कर
घंटों इक दूसरे की सुनें और कहें

और इस नेक रूहों के बाज़ार में
मेरी ये क़ीमती बे-बहा ज़िंदगी

एक दिन के लिए अपना रुख़ मोड़ ले