Pratidin Ek Kavita

फ़िलहाल | उदय प्रकाश 

एक गत्ते का आदमी
बन गया था लौहपुरुष
बलात्कारी हो चुका था सन्त
व्यभिचारी विद्वान
चापलूस क्रान्तिकारी
मदारी को घोषित कर दिया गया था
युग-प्रवर्तक
अख़बार और चैनल
चीख़-चीख़ कर कह रहे थे
आ गयी है सच्ची जम्हूरियत
जहाँ सबसे ज्यादा लाशें बिछी थीं
वहीं हो रहा था विकास
जो बैठा था किसी उजड़े पेड़ के नीचे
पढ़ते हुए अकेले में
कोई बहुत पुरानी किताब
वही था सन्दिग्ध
उसकी हो रही थी लगातार
निगरानी

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

फ़िलहाल | उदय प्रकाश

एक गत्ते का आदमी
बन गया था लौहपुरुष
बलात्कारी हो चुका था सन्त
व्यभिचारी विद्वान
चापलूस क्रान्तिकारी
मदारी को घोषित कर दिया गया था
युग-प्रवर्तक
अख़बार और चैनल
चीख़-चीख़ कर कह रहे थे
आ गयी है सच्ची जम्हूरियत
जहाँ सबसे ज्यादा लाशें बिछी थीं
वहीं हो रहा था विकास
जो बैठा था किसी उजड़े पेड़ के नीचे
पढ़ते हुए अकेले में
कोई बहुत पुरानी किताब
वही था सन्दिग्ध
उसकी हो रही थी लगातार
निगरानी