Pratidin Ek Kavita

मंच से | वैभव शर्मा

मंच के एक कोने से शोर उठता है और रोशनी भी
सामने बैठी जनता डर से भर जाती है।
मंच से बताया जाता है शांती के पहले जरूरी है क्रांति
तो सामने बैठी जनता जोश से भर जाती है।
शोर और रोशनी की ओर बढ़ती है।
डरी हुई जनता
खड़े होते हैं हाथ और लाठियां
खड़ी होती है डरी हुई भयावह जनता
डरी हुई भीड़ बड़ी भयानक होती है।
डरे हुए लोग अपना डर मिटाने हेतु
काट सकते हैं अपने ही अंग
डर मिटाने के लिए अंग काटने का चलन आया है।
मंच के दूसरे कोने से अटृहास
खून की बौछार
शोर खूंखार, भयावह आकृतियां अपार
जनता डरी और सहमी, खड़ी हाथ में लिए
तीखे नुकीले कटीले हथियार
डरी हुई जनता, अंगो को काटकर
डर को छांट छांट कर अलग करती
फिर भी डरा करती, निरन्तर
डरी हुई जनता, मंच के नीचे से
ऊपर वालों को तकती
पर उनके पास ना दिखे उसको कोई हथियार
मंच पे दिखे, सुशील मुखी, सुन्दर, चरित्रवान
एवं मोहक कलाकार
डरी सहमी, खून से लथपथ जनता
देखती शोर और अट्हास के बीच
समूचे निगले जाते अपने अंग हज़ार।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

मंच से | वैभव शर्मा

मंच के एक कोने से शोर उठता है और रोशनी भी
सामने बैठी जनता डर से भर जाती है।
मंच से बताया जाता है शांती के पहले जरूरी है क्रांति
तो सामने बैठी जनता जोश से भर जाती है।
शोर और रोशनी की ओर बढ़ती है।
डरी हुई जनता
खड़े होते हैं हाथ और लाठियां
खड़ी होती है डरी हुई भयावह जनता
डरी हुई भीड़ बड़ी भयानक होती है।
डरे हुए लोग अपना डर मिटाने हेतु
काट सकते हैं अपने ही अंग
डर मिटाने के लिए अंग काटने का चलन आया है।
मंच के दूसरे कोने से अटृहास
खून की बौछार
शोर खूंखार, भयावह आकृतियां अपार
जनता डरी और सहमी, खड़ी हाथ में लिए
तीखे नुकीले कटीले हथियार
डरी हुई जनता, अंगो को काटकर
डर को छांट छांट कर अलग करती
फिर भी डरा करती, निरन्तर
डरी हुई जनता, मंच के नीचे से
ऊपर वालों को तकती
पर उनके पास ना दिखे उसको कोई हथियार
मंच पे दिखे, सुशील मुखी, सुन्दर, चरित्रवान
एवं मोहक कलाकार
डरी सहमी, खून से लथपथ जनता
देखती शोर और अट्हास के बीच
समूचे निगले जाते अपने अंग हज़ार।