Pratidin Ek Kavita

ग़ज़ा में रमज़ान | शहंशाह आलम

ग़ज़ा में रमज़ान का चाँद निकला है
यह चाँद कितने चक्कर के बाद
बला का ख़ूबसूरत दिखाई देता है
किसी खगोल विज्ञानी को मालूम होगा
उस लड़की को भी मालूम होगा
जिसके जूड़े में पिछली ईद वाली रात
टांक दिया था मैंने यही चाँद
लेकिन ग़ज़ा में निकला यह चाँद
ग़ज़ा की प्रेम करने वाली लड़कियों को
उतना ही ख़ूबसूरत दिखाई देता होगा
जितना मुझसे प्रेम करने वाली लड़की को
या उन्हें चाँद की जगह बम दिखाई देता होगा
जिन बमों ने उनके ख़्वाब वाले लड़कों को मार डाला
या यह चाँद उनमें उकताहट पैदा कर रहा होगा
कि इस चाँद को इफ्तार में खाया नहीं जा सकता
ग़ज़ा में रमज़ान ऐसा ही तो गुज़रने वाला है
चाँद ख़ूबसूरत दिखता है तो दिखा करे


What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

ग़ज़ा में रमज़ान | शहंशाह आलम

ग़ज़ा में रमज़ान का चाँद निकला है
यह चाँद कितने चक्कर के बाद
बला का ख़ूबसूरत दिखाई देता है
किसी खगोल विज्ञानी को मालूम होगा
उस लड़की को भी मालूम होगा
जिसके जूड़े में पिछली ईद वाली रात
टांक दिया था मैंने यही चाँद
लेकिन ग़ज़ा में निकला यह चाँद
ग़ज़ा की प्रेम करने वाली लड़कियों को
उतना ही ख़ूबसूरत दिखाई देता होगा
जितना मुझसे प्रेम करने वाली लड़की को
या उन्हें चाँद की जगह बम दिखाई देता होगा
जिन बमों ने उनके ख़्वाब वाले लड़कों को मार डाला
या यह चाँद उनमें उकताहट पैदा कर रहा होगा
कि इस चाँद को इफ्तार में खाया नहीं जा सकता
ग़ज़ा में रमज़ान ऐसा ही तो गुज़रने वाला है
चाँद ख़ूबसूरत दिखता है तो दिखा करे