कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
अपनी महफ़िल | कन्हैया लाल नंदन
अपनी महफ़िल से ऐसे न टालो मुझे
मैं तुम्हारा हूँ, तुम तो सँभालो मुझे
ज़िंदगी! सब तुम्हारे भरम जी लिए
हो सके तो भरम से निकालो मुझे
मोतियों के सिवा कुछ नहीं पाओगे
जितना जी चाहे उतना खँगालो मुझे
मैं तो एहसास की एक कंदील हूँ
जब भी चाहो बुझा लो, जला लो मुझे
जिस्म तो ख़्वाब है, कल को मिट जाएगा
रूह कहने लगी है, बचा लो मुझे
फूल बन कर खिलूँगा, बिखर जाऊँगा
ख़ुशबुओं की तरह से बसा लो मुझे
दिल से गहरा न कोई समंदर मिला
देखना हो तो अपना बना लो मुझे