Pratidin Ek Kavita

एक आश्वस्ति - हल्की फुलकी | प्रेम वत्स 

एक हल्का घुला हुआ गुलाबीपन
पंखुरियों की भाँति चिपक-सा जाता है
उसके हल्के रोंयेदार गालों के दोनों उट्ठलों से
जो हल्का-सा भी अप्रत्याशित होने पर
उठ खड़े होते हैं खरगोशी कान जैसे
प्रेम में अक्सर

उसे भी तुम प्रेम ही कहो
जब वह अपनी ठुड्ढी पर तड़के आए
हल्के नर्म बालों को वजह-बेवजह
अपनी उंगलियों से पुचकारता रहता है
और ख़यालों में खोए उस महाशय से
जब तुम कुछ पूछते हो 
तो वह फिर से नापने लगता है
उन दाढ़ियों को इंच-दर-इंच
जिन्हें अब तक दाढ़ी कह पाना भी
एक अतिशयोक्ति है

वह हताश होकर खट्ट-से बैठ जाता है
गौर करो इतनी जोर की हताशा
उसे कभी नहीं आई
यह उतनी ही जोर की है
जितनी जोर की हँसी छूटी थी उसकी
कलप-कलप के रोने के घंटों बाद उस रोज

वह आज भी प्रेम में है...
इसलिए अपनी भावनाओं को
स्पर्श कर सकने की
सबसे निकटतम दूरी पर है
और शायद इसलिए
हर्ष और विषाद के उन क्षणों में
वह सबसे कुशल अभिव्यंजक होता है
इतना कुशल कि आँसूओं के आगे
जो तुम रखते हो कोरा कागज
तो रच जाता है अनंत सर्गों का महाकाव्य
और उसके अट्टहासों और चित्कारों पर
जब तुम कान धरते हो
तो सुन पाते हो
अपनी सदी के सबसे मधुरतम संगीत को

प्रेम में उसके विलाप
उतने ही कर्णप्रिया होते हैं
जितने ज्यादा कर्कश
तुम्हारे कौमी रक्षक नेताओं के
बहिष्कारी प्रवचन तुम्हें लगते हैं

तुमने उसके चेहरे की
अस्पष्ट भंगिमाएं देखीं हैं
उनमें कितनी अपार संभावनाएं हैं
अर्थ को बहुलता प्रदान करने की
तुम्हारे पर्दे पर का सर्वश्रेष्ठ नायक भी
अब एक आयामी अभिनय करने लगा है
तुमने गौर किया है इस बात पर?

उसकी मुद्राओं से बहकर गिरता है शृंगार
जब-जब भी वह स्पर्श करता है
तुम्हारे अंतःस्थल के भी निचले तल को
कितने सत्-चित्त-आनंद की
आमद होती है तुममें
तुमने टटोला है खुद को
इस धरा पर अपने सबसे ज्यादा
मत्त हुए क्षणों में

तुम उन अप्रत्याशित क्षणों में
एकदम बेडौल-से लगते हो
कोई चीन्हा-पहचाना भी तुम्हें
अनचीन्हा बता जायेगा
इतने वीभत्स दिखते हो तुम
क्या उन क्षणों में तुमने अपने अधरों पर
शहद जैसा कुछ महसूस किया है?
वह.. वही है..
तुम्हारे सबसे अनाकर्षक
पर सबसे ज्यादा मानवीय गंध में
तुम्हें सब से अधिक
अपनी साँसों में भर लेने वाला
.
प्रेम में अक्सर
अप्रत्याशा ही हाथ लगती है
जब भी प्रेम
अपने गर्भावस्था में पक रहा होता है
दो नाज़ुक शावकों के बीच
जो वयोवृद्ध होने की कगार पर हैं
पर उन क्षणों के लिए बने रहते हैं
जगत के सबसे प्रियतम जोड़े
जैसे इस क्षण के लिए
एक तुम हो और एक वह... 

देखो वह अब भी
अपनी ठुड्ढी के बालों को सहला रहा है
देखो उसके गालों के दो उट्ठलों में
फंसे गुलाबीपन को

किसी के तुम्हारे प्रेम में होने का
इससे ज्यादा क्या प्रमाण चाहिए तुम्हें!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

एक हल्का घुला हुआ गुलाबीपन
पंखुरियों की भाँति चिपक-सा जाता है
उसके हल्के रोंयेदार गालों के दोनों उट्ठलों से
जो हल्का-सा भी अप्रत्याशित होने पर
उठ खड़े होते हैं खरगोशी कान जैसे
प्रेम में अक्सर

उसे भी तुम प्रेम ही कहो
जब वह अपनी ठुड्ढी पर तड़के आए
हल्के नर्म बालों को वजह-बेवजह
अपनी उंगलियों से पुचकारता रहता है
और ख़यालों में खोए उस महाशय से
जब तुम कुछ पूछते हो
तो वह फिर से नापने लगता है
उन दाढ़ियों को इंच-दर-इंच
जिन्हें अब तक दाढ़ी कह पाना भी
एक अतिशयोक्ति है

वह हताश होकर खट्ट-से बैठ जाता है
गौर करो इतनी जोर की हताशा
उसे कभी नहीं आई
यह उतनी ही जोर की है
जितनी जोर की हँसी छूटी थी उसकी
कलप-कलप के रोने के घंटों बाद उस रोज

वह आज भी प्रेम में है...
इसलिए अपनी भावनाओं को
स्पर्श कर सकने की
सबसे निकटतम दूरी पर है
और शायद इसलिए
हर्ष और विषाद के उन क्षणों में
वह सबसे कुशल अभिव्यंजक होता है
इतना कुशल कि आँसूओं के आगे
जो तुम रखते हो कोरा कागज
तो रच जाता है अनंत सर्गों का महाकाव्य
और उसके अट्टहासों और चित्कारों पर
जब तुम कान धरते हो
तो सुन पाते हो
अपनी सदी के सबसे मधुरतम संगीत को

प्रेम में उसके विलाप
उतने ही कर्णप्रिया होते हैं
जितने ज्यादा कर्कश
तुम्हारे कौमी रक्षक नेताओं के
बहिष्कारी प्रवचन तुम्हें लगते हैं

तुमने उसके चेहरे की
अस्पष्ट भंगिमाएं देखीं हैं
उनमें कितनी अपार संभावनाएं हैं
अर्थ को बहुलता प्रदान करने की
तुम्हारे पर्दे पर का सर्वश्रेष्ठ नायक भी
अब एक आयामी अभिनय करने लगा है
तुमने गौर किया है इस बात पर?

उसकी मुद्राओं से बहकर गिरता है शृंगार
जब-जब भी वह स्पर्श करता है
तुम्हारे अंतःस्थल के भी निचले तल को
कितने सत्-चित्त-आनंद की
आमद होती है तुममें
तुमने टटोला है खुद को
इस धरा पर अपने सबसे ज्यादा
मत्त हुए क्षणों में

तुम उन अप्रत्याशित क्षणों में
एकदम बेडौल-से लगते हो
कोई चीन्हा-पहचाना भी तुम्हें
अनचीन्हा बता जायेगा
इतने वीभत्स दिखते हो तुम
क्या उन क्षणों में तुमने अपने अधरों पर
शहद जैसा कुछ महसूस किया है?
वह.. वही है..
तुम्हारे सबसे अनाकर्षक
पर सबसे ज्यादा मानवीय गंध में
तुम्हें सब से अधिक
अपनी साँसों में भर लेने वाला
.
प्रेम में अक्सर
अप्रत्याशा ही हाथ लगती है
जब भी प्रेम
अपने गर्भावस्था में पक रहा होता है
दो नाज़ुक शावकों के बीच
जो वयोवृद्ध होने की कगार पर हैं
पर उन क्षणों के लिए बने रहते हैं
जगत के सबसे प्रियतम जोड़े
जैसे इस क्षण के लिए
एक तुम हो और एक वह...

देखो वह अब भी
अपनी ठुड्ढी के बालों को सहला रहा है
देखो उसके गालों के दो उट्ठलों में
फंसे गुलाबीपन को

किसी के तुम्हारे प्रेम में होने का
इससे ज्यादा क्या प्रमाण चाहिए तुम्हें!