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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
अमलताश | अंजना वर्मा
उठा लिया है भार
इस भोले अमलताश ने
दुनिया को रौशन करने का
बिचारा दिन में भी
जलाये बैठा है करोड़ों दीये!
न जाने किस स्त्री ने
टाँग दिये अपने सोने के गहने
अमलताश की टहनियों पर
और उन्हें भूलकर चली गई
पीली तितलियों का घर है अमलताश
या सोने का शहर है अमलताश
दीवाली की रात है अमलताश
या जादुई करामात है अमलताश!