Pratidin Ek Kavita

कबाड़खाना | प्रतिभा सक्सेना

हर घर में
कुछ कुठरियाँ या कोने होते हैं,
जहाँ फ़ालतू कबाड़ इकट्ठा रहता है.
मेरे मस्तिष्क के कुछ कोनों में भी
ऐसा ही अँगड़-खंगड़ भरा है!
जब भी कुछ खोजने चलती हूँ
तमाम फ़ालतू चीज़ें सामने आ जाती हैं,
उन्हीं को बार-बार,
देखने परखने में लीन
भूल जाती हूँ,
कि क्या ढूँढने आई थी!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

कबाड़खाना | प्रतिभा सक्सेना

हर घर में
कुछ कुठरियाँ या कोने होते हैं,
जहाँ फ़ालतू कबाड़ इकट्ठा रहता है.
मेरे मस्तिष्क के कुछ कोनों में भी
ऐसा ही अँगड़-खंगड़ भरा है!
जब भी कुछ खोजने चलती हूँ
तमाम फ़ालतू चीज़ें सामने आ जाती हैं,
उन्हीं को बार-बार,
देखने परखने में लीन
भूल जाती हूँ,
कि क्या ढूँढने आई थी!