Pratidin Ek Kavita

पास आओ मेरे | नरेंद्र कुमार 

पास आओ मेरे
मुझे समझाओ ज़रा
ये जो रोम-रोम में तुम्हारे नफ़रत रमी है
तुममें ऐसी क्या कमी है 
खुद से पूछो ज़रा 
खुद को बताओ ज़रा 
व्हाट्सएप की जानकारी
टीवी की डिबेट सारी
साइड में रखो इसे
इंसानियत की बात करें 
इसमें ऐसा क्या डर है
मरहम होती है क्या
ज़ख्म से पूछो ज़रा
मेरा एक काम कर दो
मुझे कहीं से ढूँढ कर वो प्रार्थना दो
जिसमें हिंसा, द्वेष, और कलेश हो

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

पास आओ मेरे | नरेंद्र कुमार

पास आओ मेरे
मुझे समझाओ ज़रा
ये जो रोम-रोम में तुम्हारे नफ़रत रमी है
तुममें ऐसी क्या कमी है
खुद से पूछो ज़रा
खुद को बताओ ज़रा
व्हाट्सएप की जानकारी
टीवी की डिबेट सारी
साइड में रखो इसे
इंसानियत की बात करें
इसमें ऐसा क्या डर है
मरहम होती है क्या
ज़ख्म से पूछो ज़रा
मेरा एक काम कर दो
मुझे कहीं से ढूँढ कर वो प्रार्थना दो
जिसमें हिंसा, द्वेष, और कलेश हो