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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
प्रेम में मैं और तुम | अंशू कुमार
एक दिन तुम और मैं
जब अपनी अपनी धुरी पर
लौट रहे होंगे
ख़ाली हाथ, बेआवाज़ और बदहवास
अपने-अपने हिस्से के सुख और दुःख लिए
अब कब मिलेंगे, मिलेंगे भी या नहीं
जैसे ख़ौफ़नाक सवाल लिए
अनंत ख़ालीपन के साथ
तब सबसे अंत में
हमारे हिस्से का प्रेम ही बचेगा
जो अगर बचा सकता तो बचा लेगा हमें
एक बार फिर से मिलने की उम्मीद में...!