Pratidin Ek Kavita

साल मुबारक! | आशीष पण्ड्या 

साल मुबारक!
भगवा हो या लाल, मुबारक!
साल मुबारक!

आज नया कल हुआ पुराना,
टिक टिक करता काल मुबारक!

पैसे की भूखी दुनिया को,
थाल में रोटी-दाल मुबारक!

चिंताओं से लदी चाँद पर,
बचे खुचे कुछ बाल मुबारक!

यहाँ पड़े हैं जान के लाले,
वो कहते लोकपाल मुबारक!

काली करतूतों की गठरी,
धवल रेशमी शाल मुबारक!

ग़ैरत! इज्ज़त! शर्म? निरर्थक,
अब तो मोटी खाल मुबारक!

आँख का पानी सूख चुका कब
बना टपकती राल, मुबारक!

जिस पर बैठा उसी को काटे,
पल पल गिरती डाल मुबारक!

शोर है अँधा, बहरा हल्ला,
मंथर दिल की ताल मुबारक!

सरपट दौड़े दुनिया, मुझको
अपनी फक्कड़ चाल मुबारक!

साल मुबारक!
भगवा हो या लाल, मुबारक!
साल मुबारक!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

साल मुबारक! | आशीष पण्ड्या

साल मुबारक!
भगवा हो या लाल, मुबारक!
साल मुबारक!

आज नया कल हुआ पुराना,
टिक टिक करता काल मुबारक!

पैसे की भूखी दुनिया को,
थाल में रोटी-दाल मुबारक!

चिंताओं से लदी चाँद पर,
बचे खुचे कुछ बाल मुबारक!

यहाँ पड़े हैं जान के लाले,
वो कहते लोकपाल मुबारक!

काली करतूतों की गठरी,
धवल रेशमी शाल मुबारक!

ग़ैरत! इज्ज़त! शर्म? निरर्थक,
अब तो मोटी खाल मुबारक!

आँख का पानी सूख चुका कब
बना टपकती राल, मुबारक!

जिस पर बैठा उसी को काटे,
पल पल गिरती डाल मुबारक!

शोर है अँधा, बहरा हल्ला,
मंथर दिल की ताल मुबारक!

सरपट दौड़े दुनिया, मुझको
अपनी फक्कड़ चाल मुबारक!

साल मुबारक!
भगवा हो या लाल, मुबारक!
साल मुबारक!