Pratidin Ek Kavita

अनंत जन्मों की कथा | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी 

मुझे याद है
अपने अनंत जन्मों की  कथा
पिता ने उपेक्षा की
सती हुई मैं
चक्र से कटे मेरे अंग-प्रत्यंग
जन्मदात्री माँ ने अरण्य में छोड़ दिया असहाय
पक्षियों ने पाला
शकुंतला कहलाई
जिसने प्रेम किया
उसी ने इनकार किया पहचानने से
सीता नाम पड़ा
धरती से निकली
समा गई अग्नि-परीक्षा की धरती में
जन्मते ही फेंक दी गई आम्र कुंज में
आम्रपाली कहलाई;
सुंदरी थी
इसलिए पूरे नगर का हुआ मुझ पर अधिकार
जली मैं वीरांगना
बिकी मैं वारांगना 
देवदासी द्रौपदी 
कुलवधू नगरवधू
कितने-कितने मिले मुझे नाम-रूप
पृथ्वी, पवन
जल, अग्नि, गगन
मरु, पर्वत, वन
सबमें व्याप्त है मेरी व्यथा।
मुझे याद है
अपने अनंत जन्मों की कथा

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

अनंत जन्मों की कथा | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

मुझे याद है
अपने अनंत जन्मों की कथा
पिता ने उपेक्षा की
सती हुई मैं
चक्र से कटे मेरे अंग-प्रत्यंग
जन्मदात्री माँ ने अरण्य में छोड़ दिया असहाय
पक्षियों ने पाला
शकुंतला कहलाई
जिसने प्रेम किया
उसी ने इनकार किया पहचानने से
सीता नाम पड़ा
धरती से निकली
समा गई अग्नि-परीक्षा की धरती में
जन्मते ही फेंक दी गई आम्र कुंज में
आम्रपाली कहलाई;
सुंदरी थी
इसलिए पूरे नगर का हुआ मुझ पर अधिकार
जली मैं वीरांगना
बिकी मैं वारांगना
देवदासी द्रौपदी
कुलवधू नगरवधू
कितने-कितने मिले मुझे नाम-रूप
पृथ्वी, पवन
जल, अग्नि, गगन
मरु, पर्वत, वन
सबमें व्याप्त है मेरी व्यथा।
मुझे याद है
अपने अनंत जन्मों की कथा