कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
मुझे प्रेम चाहिए | नीलेश रघुवंशी
मुझे प्रेम चाहिए
घनघोर बारिश-सा ।
कड़कती धूप में घनी छाँव-सा
ठिठुरती ठंड में अलाव-सा प्रेम चाहिए मुझे।
उग आये पौधों और लबालब नदियों-सा
दूर तक पैली दूब
उस पर छाई ओस की बुँदों सा ।
काले बादलों में छिपा चाँद
सूरज की पहली किरण-सा
प्रेम चाहिए ।
खिला-खिला लाल गुलाब-सा
कुनमुनाती हँसी-सा
अँधेरे में टिमटिमाती रोशनी-सा प्रेम चाहिए।
अनजाना अनचीन्हा अनबोला सा
पहली नज़र-सा प्रेम चाहिए मुझे ।
ऊबड़-खाबड़ रास्तों से मंज़िल तक पहुँचाता
प्रेम चाहिए मुझे।
मुझे प्रेम चाहिए
सारी दुनिया रहती हो जिसमें
प्रेम चाहिए मुझे ।