Pratidin Ek Kavita

दरार में उगा पीपल | अरविन्द अवस्थी

ज़मीन से बीस फीट ऊपर
किले की दीवार की
दरार में उगा पीपल
महत्वकांक्षा की डोर पकड़
लगा है कोशिश में
ऊपर और ऊपर जाने की
जीने के लिए
खींच ले रहा है
हवा से नमी
सूरज से रोशनी
अपने हिस्से की
पत्तियाँ लहराकर
दे रहा है सबूत
अपने होने का

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

दरार में उगा पीपल | अरविन्द अवस्थी

ज़मीन से बीस फीट ऊपर
किले की दीवार की
दरार में उगा पीपल
महत्वकांक्षा की डोर पकड़
लगा है कोशिश में
ऊपर और ऊपर जाने की
जीने के लिए
खींच ले रहा है
हवा से नमी
सूरज से रोशनी
अपने हिस्से की
पत्तियाँ लहराकर
दे रहा है सबूत
अपने होने का