Pratidin Ek Kavita

कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते | सलमान अख़्तर

कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते
दीवार बहानों की गिरा क्यों नहीं देते

तुम पास हो मेरे तो पता क्यों नहीं चलता
तुम दूर हो मुझसे तो सदा क्यों नहीं देते

बाहर की हवाओं का अगर ख़ौफ़ है इतना
जो रौशनी अंदर है, बुझा क्यों नहीं देते

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते | सलमान अख़्तर

कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते
दीवार बहानों की गिरा क्यों नहीं देते

तुम पास हो मेरे तो पता क्यों नहीं चलता
तुम दूर हो मुझसे तो सदा क्यों नहीं देते

बाहर की हवाओं का अगर ख़ौफ़ है इतना
जो रौशनी अंदर है, बुझा क्यों नहीं देते