Pratidin Ek Kavita

संतान साते - नीलेश रघुवंशी 

माँ परिक्रमा कर रही होगी पेड़ की
हम परिक्रमा कर रहे हैं पराये शहर की
जहाँ हमारी इच्छाएँ दबती ही जा रही हैं ।
सात पुए और सात पूड़ियाँ थाल में सजाकर
रखी होंगी नौ चूड़ियाँ
आठ बहन और एक भाई की ख़ुशहाली
और लंबी आयु
पेड़ की परिक्रमा करते
कभी नहीं थके माँ के पाँव।
माँ नहीं समझ सकी कभी
जब माँग रही होती है वह दुआ
हम सब थक चुके होते हैं जीवन से।
माँ के थाल में सजी होंगी
सात पूड़ियाँ और सात पुए
पूजा में बेख़बर माँ नहीं जानती
उसकी दो बेटियाँ
पराये शहर में भूखी होंगी
सबसे छोटी और लाड़ली बेटी
जिसके नाम की पूड़ी
इठला रही होगी माँ के थाल में 
पूड़ी खाने की इच्छा को दबा रही होती है ।


What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

संतान साते - नीलेश रघुवंशी

माँ परिक्रमा कर रही होगी पेड़ की
हम परिक्रमा कर रहे हैं पराये शहर की
जहाँ हमारी इच्छाएँ दबती ही जा रही हैं ।
सात पुए और सात पूड़ियाँ थाल में सजाकर
रखी होंगी नौ चूड़ियाँ
आठ बहन और एक भाई की ख़ुशहाली
और लंबी आयु
पेड़ की परिक्रमा करते
कभी नहीं थके माँ के पाँव।
माँ नहीं समझ सकी कभी
जब माँग रही होती है वह दुआ
हम सब थक चुके होते हैं जीवन से।
माँ के थाल में सजी होंगी
सात पूड़ियाँ और सात पुए
पूजा में बेख़बर माँ नहीं जानती
उसकी दो बेटियाँ
पराये शहर में भूखी होंगी
सबसे छोटी और लाड़ली बेटी
जिसके नाम की पूड़ी
इठला रही होगी माँ के थाल में
पूड़ी खाने की इच्छा को दबा रही होती है ।