Pratidin Ek Kavita

झरबेर | केदारनाथ सिंह 

प्रचंड धूप में
इतने दिनों बाद 
(कितने दिनों बाद)
मैंने ट्रेन की खिड़की से देखे 
कँटीली झाड़ियों पर
पीले-पीले फल
’झरबेर हैं’- मैंने अपनी स्मृति को कुरेदा
और कहीं गहरे
एक बहुत पुराने काँटे ने
फिर मुझे छेदा

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

झरबेर | केदारनाथ सिंह

प्रचंड धूप में
इतने दिनों बाद
(कितने दिनों बाद)
मैंने ट्रेन की खिड़की से देखे
कँटीली झाड़ियों पर
पीले-पीले फल
’झरबेर हैं’- मैंने अपनी स्मृति को कुरेदा
और कहीं गहरे
एक बहुत पुराने काँटे ने
फिर मुझे छेदा