Nayidhara Ekal

नई धारा एकल के इस एपिसोड में देखिए जानी मानी अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी द्वारा कृष्णा सोबती के उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’ की नाट्य प्रस्तुति में से एक अंश।
नई धारा एकल श्रृंखला में अभिनय जगत के सितारे, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों में से अंश प्रस्तुत करेंगे और साथ ही साझा करेंगे उन नाटकों से जुड़ी अपनी व्यक्तिगत यादें।
दिनकर की कृति ‘रश्मिरथी’ से मोहन राकेश के नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ तक और धर्मवीर भारती के नाटक ‘अंधा युग’ से भीष्म साहनी के ‘हानूश’ तक - आधुनिक हिन्दी साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण कृतियाँ, आपके पसंदीदा अदाकारों की ज़बानी।
नई धारा वेबसाइट:
https://nayidhara.in/

What is Nayidhara Ekal?

साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।

नमस्कार। मेरा नाम अमिताभ श्रीवास्तव है। और मैं स्वागत करता हूँ आप सबका हमारे इस विशेष कार्यक्रम में जिसका नाम है ‘नई धारा एकल’। इस कार्यक्रम में हम प्रसिद्ध अभिनेता-अभिनेत्रियों से उनकी पसंद की रचना का एक अंश सुनते हैं।
हमारे आज के एपिसोड की अभिनेत्री हैं–हिमानी शिवपुरी जी।
हिमानी जी मूलत: देहरादून से हैं। आपने एनएसडी से डिप्लोमा प्राप्त किया और उसके बाद राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल में लगभग छह साल तक काम किया। वहाँ आपने अनेक नाटकों में प्रमुख भूमिकाएँ निभाईं। आज वो हम लोगों को उन्हीं में से एक नाटक ‘मित्रो मरजानी’ का एक अंश सुनाएँगी!
मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती का एक बहुत ही अनूठा शाहकार है, उनका उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’। इसकी खासियत है इसका एक बहुत ही नए किस्म का कथा शिल्प और इसकी नायिका मित्रो, जो एक बहुत ही बोल्ड, सेंसुअल और विद्रोही पात्र है।
मित्रो की शादी एक मिडिल क्लास, बहुत ही सम्माननीय बिजनेस फ़ैमिली में होती है, जहाँ पर बहुओं पर काफी पाबंदियाँ रहती हैं। लेकिन मित्रो वो इनसान नहीं जो कि घूँघट के अंदर कैद रहे। उसका पति थोड़ा दब्बू भी है और कुछ डरता-सा भी है। पर मित्रो बहुत ही मुँहजोर, बहुत ही बेबाक महिला है।
उसका एक नमूना हम देखते हैं हिमानी जी से!
बुरे मथ्थेवाले! मर्दजन होते तो चटखारे ले मुझे चाटते या फिर शेर की तरह कच्चा चबा डालते।
हूंह…चिंता जंजाल किसको! मैं तो चिंता जंजाल करने वाली की पेट ही नहीं पड़ी। बनारसी पता है क्या कहता है–‘अय्य हय मित्रो तेरी देह क्या शीरा है शीरा…।’ उस नास-होने से कहती हूँ, अरे! इसी शीरे में तेरी जान को डंक मारती सर्पों की फौजें पलतीं हैं।
टुक आँखें खोल! इधर तो निरख जेठानी! हंहह…अरे, सुन ले इनसे क्या डरती हूँ? बहनेली इत्ती सी मेरी बात रख ले बस!
सच-सच कहना जेठानी, क्या ऐसी छातियाँ किसी और की भी हैं? हंह…हं…मैं सदके बलिहारी अपने जेठ की सती साधवी नार पर।
जेठानी अपने जेठ से कह रखना कि जब तक मित्रो के पास ये इलाही ताकत है, मित्रो मरती नहीं, हंहंह…।
क्या, मैं इस राह-कुराह कैसे पड़ी!?
सात नदियों की तारु, तवे-सी काली मेरी माँ…और मैं गोरी चिट्टी उसकी कोख पड़ी!
हूं…हूं…।
कहती है, कि इलाके की बड़भागी तहसीलदार की मुँहादरा है मित्रो।
अब तुम्हीं बताओ जेठानी, तुम जैसा सत-बल कहाँ से पाऊँ-लाऊँ? देवर तुम्हारा मेरा रोग ही नहीं पहचानता। बहुत हुआ हफ्ते-पखवारे…मेरी इस देह में इत्ती प्यास है, इत्ती प्यास है कि मछली-सी तड़पती हूँ।
अच्छा, ठीक है लो। मित्रो, रानी चिंता-फिकर तेरे बैरियों को। जिस गढ़ने वाले ने तुझे गढ़ कर दुनिया का सुख लूटने को भेजा है, वही जहान का वाली तेरी फिकर भी करेगा।
मुँह अँधेरे यहाँ कैसे माँ जी! मित्रो बेचारी अगले जहान न चली कि तुम दीवा-बत्ती करवाने आई हो, हं…हं…दिनदहाड़े बहुतेरे आएँगे माँ जी। सारी चिंता सोग आज ही न निपटा लो।
जेठ जी अपनी जेठानी के तुल में मैं कहाँ! पर एक नज़र इधर भी।
हं..हं…
एक छोटे से अंश में सजीव कर दिया मित्रो के चरित्र को हिमानी जी ने! हिमानी जी ने रोल किया ये बहुत ही लीक से हटकर के था। उनसे जब पूछा कि इसको करने से उनमें क्या परिवर्तन आया? उनके कैरियर में क्या बदलाव आया, तो उन्होंने कहा,
‘मित्रो मरजानी…ये मैंने…आई थिंक ‘80s में ये नाटक किया था और उस वक्त मैं रेपर्टोरी कंपनी में थी। और ये मेरा दूसरा…आई थिंक मेजर रोल था, पहला तो मैंने वो किया था फ्रिट्ज़ बेन्नेविट्ज़ के साथ ऑथेलो में डेस्डेमोना । लेकिन ये जब मैं…हम लोग रीडिंग कर रहे थे तो शाह जी आए, जैसे कास्टिंग का प्रोसेस होता है तो हर एक से, कभी मुझसे मित्रो का रोल, कभी दूसरे ऐक्टर से मित्रो का, तो मैं और भी रोल पढ़ती रही। तो ये कुछ…पढ़ते वक्त कुछ विचित्र सा कैरेक्टर लगा। अनयूजुअल कैरेक्टर था। तो पहली बार…मतलब, नहीं तो हर ऐक्टर के…और खासकर मेरे तो जो प्ले में जो मेन रोल होता था उसे करने की इच्छा होती कि भैया ये रोल मुझे मिलना चाहिए।
लेकिन मित्रो को…मतलब, आई वाज…मतलब सो…सो, मतलब एक्साइटमेंट इतना नहीं था, क्योंकि कुछ वैसा कैरेक्टर था…कुछ भलता सा कैरेक्टर था, अलग कैरेक्टर था। क्योंकि मैं बेसिकली स्मॉल टाउन देहरादून से आई, और मेरी मिडिल क्लास, पूरी मिडिल क्लास। हालाँकि ये प्ले का जो पूरा परिवेश है वो भी एक मिडिल क्लास है, लेकिन जो मित्रो का कैरेक्टर है वो इतना अनयूजुअल! और पहली बार मुझे लगता है हिंदी साहित्य में एक ऐसी महिला जो कि खुलेआम अपनी शारीरिक जरूरतों के बारे में बात करती है। हू इज प्राउड ऑफ हर बॉडी। फिर कास्ट हुआ तो मैं मित्रो का…शाह जी ने अनाउंस किया कि मैं मित्रो मरजानी कर रही हूँ! तो फिर कैसे धीरे-धीरे रोल में ढलना, वो पूरा प्रोसेस, क्योंकि अपने अगेंस्ट कुछ करना…तो एक ऐक्टर की जो स्ट्रगल होती है कि…बिकाऊज बेसिकली आई एम…मतलब मैंने जितने भी अभी, स्टेज पर या स्क्रीन पर भी जो कैरेक्टर्स के बेसिकली…मैं बड़ी इंट्रोवर्ट काइन्ड ऑफ परसन हूँ तो ये टोटली बिंदास कैरेक्टर था।
तो उसको करना, तो उसको मैंने…अभी तक ये मेरी किताब, तबसे मैंने ये सँभाली रही! तो अभी मैं पढ़ रही थी जब ‘बॉबी तुम आए मेरे पास…कि तुम्हें स्पीच करनी है’ तो उसमें नोट्स लिखे हुए हैं कि कैसे कैरेक्टर को अप्रोच करना कि यू फाइंड द मोटिव कि ये क्यों ऐसी है तो उसकी हिस्ट्री में जाना जो कि इसके स्पीच में था कि ये एक ऐसे माहौल से आई है कि उसकी माँ फ्री…उसमें बिलीव करती है कि ऐसी बॉडी का जो एक होता है मिडिल क्लास में कि तुम्हारा पति है तो तुम इसी के साथ रहोगी, और सड़क पर चल रही है तो मतलब अपने बदन को ढकते हुए…। लेकिन ये एक ऐसी किरदार थी कि वो अपनी जेठानी से कहती है कि उसे जब लोग छेड़ते हैं तो उसे मज़ा आता है। जैसे पूरी वेस्टर्न विमन न कि उनका पिन्च करो तो उनको लगता है कि हाँ, ये हमारे लिए कॉम्प्लिमेंट है, लेकिन ये मित्रो ऐसी महिला थी जिसको…और उसकी बॉडी का…जैसा कहते है कि इट इज़ नेचुरल दिस थिंक कि हर वुमन की फिजिकल निड्स भी होती हैं, लेकिन हम महिलाओं को दबाया जाता है। लेकिन ये मित्रो…क्योंकि जिस माहौल से ये आई है तो ये बिल्कुल बेबाक थी और उसका हसबैंड कभी-कभी शायद…वो अपने काम में इतना बिजी है कि…तो उसके साथ, उसकी जो फिजिकल भूख है उसको सेटिस्फाई नहीं कर पाता तो उनके…रोज उनके घर में मार-पिटाई होती है, तो आदमी का क्या होता कि वो डॉमिनेट करता है और कैसे औरत जब डॉमिनेट नहीं हो रही है तो उस पर हाथ उठाता है।
तो वही मेरी सास यही कहती है कि भई रोज़, सास-ससुर की ये बात कि रोज़ इनके कमरे से मार-पीटने की आवाज़ आती है। क्योंकि उससे कुछ होता नहीं है तो वो मुझे मारना-पीटना शुरू कर देता है।
और इसकी भाषा…कृष्णा सोबती जी ने इसकी जो भाषा लिखी है, उसका अपना एक रिदम है, अपनी ताल है, अपना एक लहज़ा है। तो उस लहज़े को पकड़ना वो बड़ा चैलेंज था। पहला ‘शो’ हुआ था स्टूडियो थिएटर में, एनएसडी रेपेट्री में। तो एक महिला बैकस्टेज आए, मतलब आँखों में काला चश्मा और सर पूरा ढका हुआ और…आई थिंक गहरे नीले रंग का उन्होंने शरारा, एवरीथिंग कवर्ड, और शाह जी लेकर आए कि ये है कृष्णा सोबती! तो मैं तो अवाक् रह गई कि पूरी ढकी हुई, आँखें भी नहीं दिख रही! इन्होंने मित्रो मरजानी जैसा कैरेक्टर लिखा! खैर ये तो मज़ाक़ की बात है। और फिर उन्होंने आ कर मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और मुझे कहा कि तुमने मित्रो का कैरेक्टर बिल्कुल सजीव कह दिया! इट वाज बिग कॉम्प्लिमेंट…और उसके बाद से हर ‘शो’ में कृष्णा जी आती थीं, ‘शो’ देखने के लिए, उनको बड़ा मज़ा आता था। और उनकी ये ख़्वाहिश थी कि इस पर फिल्म बने और बी.एम. शाह जी डायरेक्ट करें। और कई बार, उसके बाद भी उनसे मुलाकात या टेलीफोन पर बात होती थी तो वो यही चाहती थीं, वो मुझसे कहती थीं कि मित्रो के ऊपर फिल्म बनेगी तो तुम…मैं चाहती हूँ कि तुम करो। और मैं मुंबई यूनिवर्सिटी में भी जब मैंने एक सीन वर्क किया था या प्रोडक्शन किया था तो मित्रो मरजानी किया मैंने, तो मैंने उनको फोन किया, उनसे परमिशन माँगी तो उन्होंने कहा, हाँ हिमानी तुम तो कर ही सकती हो, तुम ही तो मेरी मित्रो हो!
तो दोस्तो ये थी हमारी आज की पेशकश!
इस कार्यक्रम के अगले एपिसोड में हम लोग मिलेंगे एक बहुत ही जाने-पहचाने चेहरे से, जिनका नाम है वीरेंद्र सक्सेना! और हाँ, आप लोगों से अनुरोध है कि कृपया आपलोग नई धारा के यू ट्यूब चैनल को सब्सक्राइव करें और देखें हमारे सोशल मीडिया के प्लेटफार्म को।
नमस्कार!