Pratidin Ek Kavita

सीने में क्या है तुम्हारे / अक्षय उपाध्याय

कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में
कितनी नदियाँ हैं
कितने झरने हैं

कितने पहाड़ हैं तुम्हारी देह में
कितनी गुफ़ाएँ हैं

कितने वृक्ष हैं
कितने फल हैं तुम्हारी गोद में

कितने पत्ते हैं
कितने घोंसले हैं तुम्हारी आत्मा में
कितनी चिड़ियाँ हैं

कितने बच्चे हैं तुम्हारी कोख में
कितने सपने हैं
कितनी कथाएँ हैं तुम्हारे स्वप्नों में

कितने युद्ध हैं
कितने प्रेम हैं

केवल नहीं है तो वह मैं हूँ
अभी और कितना फैलना है मुझे
कितना और पकना है मुझे
कहो
मैं भी
तुम्हारी जड़ों के साथ उग सकूँ
कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में
कितने सूरज?


What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

सीने में क्या है तुम्हारे / अक्षय उपाध्याय

कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में
कितनी नदियाँ हैं
कितने झरने हैं

कितने पहाड़ हैं तुम्हारी देह में
कितनी गुफ़ाएँ हैं

कितने वृक्ष हैं
कितने फल हैं तुम्हारी गोद में

कितने पत्ते हैं
कितने घोंसले हैं तुम्हारी आत्मा में
कितनी चिड़ियाँ हैं

कितने बच्चे हैं तुम्हारी कोख में
कितने सपने हैं
कितनी कथाएँ हैं तुम्हारे स्वप्नों में

कितने युद्ध हैं
कितने प्रेम हैं

केवल नहीं है तो वह मैं हूँ
अभी और कितना फैलना है मुझे
कितना और पकना है मुझे
कहो
मैं भी
तुम्हारी जड़ों के साथ उग सकूँ
कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में
कितने सूरज?