Pratidin Ek Kavita

यात्रा | नरेश सक्सेना 

नदी के स्रोत पर मछलियाँ नहीं होतीं 
शंख–सीपी मूँगा-मोती कुछ नहीं होता नदी के स्रोत पर 
गंध तक नहीं होती 
सिर्फ़ होती है एक ताकत खींचती हुई नीचे 
जो शिलाओं पर छलाँगें लगाने पर विवश करती है
सब कुछ देती है यात्रा 
लेकिन जो देते हैं धूप-दीप और 
जय-जयकार देते हैं 
वही मैल और कालिख से भर देते हैं
धुआँ-धुआँ होती है नदी 
बादल-बादल होती है नदी 
लौटती है फिर से उन्हीं निर्मल ऊँचाइयों की ओर
लेकिन इस यात्रा में कोई भी नहीं देता साथ 
वे शिलाएँ भी नहीं 
जो साथ चलने की कोशिश में रेत हो गई थीं
वापसी की यात्रा में 
नदी होती है 
रंगहीन 
गंधहीन 
स्वादहीन।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

यात्रा | नरेश सक्सेना

नदी के स्रोत पर मछलियाँ नहीं होतीं
शंख–सीपी मूँगा-मोती कुछ नहीं होता नदी के स्रोत पर
गंध तक नहीं होती
सिर्फ़ होती है एक ताकत खींचती हुई नीचे
जो शिलाओं पर छलाँगें लगाने पर विवश करती है
सब कुछ देती है यात्रा
लेकिन जो देते हैं धूप-दीप और
जय-जयकार देते हैं
वही मैल और कालिख से भर देते हैं
धुआँ-धुआँ होती है नदी
बादल-बादल होती है नदी
लौटती है फिर से उन्हीं निर्मल ऊँचाइयों की ओर
लेकिन इस यात्रा में कोई भी नहीं देता साथ
वे शिलाएँ भी नहीं
जो साथ चलने की कोशिश में रेत हो गई थीं
वापसी की यात्रा में
नदी होती है
रंगहीन
गंधहीन
स्वादहीन।