Nayidhara Ekal

नई धारा एकल के इस एपिसोड में देखिए मशहूर अभिनेत्री लवलीन मिश्रा द्वारा, हज़रत आवारा द्वारा अनुदित मौलियर के नाटक, 'कंजूस' में से एक अंश। 

नई धारा एकल श्रृंखला में अभिनय जगत के सितारे, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों में से अंश प्रस्तुत करेंगे और साथ ही साझा करेंगे उन नाटकों से जुड़ी अपनी व्यक्तिगत यादें।

दिनकर की कृति ‘रश्मिरथी’ से मोहन राकेश के नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ तक और धर्मवीर भारती के नाटक ‘अंधा युग’ से भीष्म साहनी के ‘हानूश’ तक - आधुनिक हिन्दी साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण कृतियाँ, आपके पसंदीदा अदाकारों की ज़बानी।

What is Nayidhara Ekal?

साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।

नमस्कार, मैं अमिताभ श्रीवास्तव एक बार फिर हाजिर हूँ आपलोग के सामने अपने इस ख़ास कार्यक्रम ‘नई धारा एकल’ के साथ। इस कार्यक्रम में हम हर बार आपको किसी-न-किसी जानेमाने अभिनेता-अभिनेत्री से मिलवाते हैं, जो आपके लिए अपनी पसंद की किसी रचना के एक अंश का पाठ करते हैं।
हमारी आज की मेहमान हैं–लवलीन मिश्रा जी। भारतीय टेलीविजन के पहले सोप ओपेरा…हमलोग में छुटकी के किरदार से लोकप्रिय हुई लवलीन दिल्ली और मुम्बई, दोनों ही महानगरों के रंगमंच में हमेशा सक्रिय रही हैं। बृजमोहन शाह, देवेन्द्र राज अंकुर, बैरी जॉन और नसीरुद्दीन शाह जैसे ख्याति प्राप्त निर्देशकों के साथ आपने काम किया है। आज लवलीन हमलोगों के लिए सत्रहवीं शताब्दी के मशहूर नाटककार मौलियर की एक रचना ‘कंजूस’ का एक पात्र लेकर आई हैं, जिसका नाम है फर्ज़ीना।
मौलियर सत्रहवीं शताब्दी के फ्रांस के एक बहुत ही मशहूर नाटककार थे। उनके हास्य नाटक आज भी पूरी दुनिया में लगभग हर ज़ुबान में, हर देश में खेले जाते हैं। उन्हीं का एक बहुत मशहूर नाटक है–द माइज़र, जिसे हिंदुस्तानी ज़ुबान में रूपांतरित किया हजऱत आवारा ने कंजूस के नाम से। इस नाटक की पहली प्रस्तुति 1965 में इब्राहिम अल्काज़ी ने डायरेक्ट की थी नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के लिए। चलिए इस नाटक की कहानी जानते हैं। इसमें एक सज्जन हैं जिनका नाम है मिर्ज़ा सखावत बेग। बेग साहब बहुत ही रईस हैं, उम्रदराज और बूढ़े हैं पर बहुत कंजूस हैं। और अब बुढ़ापे में वो दोबारा शादी करना चाहते हैं! हालाँकि उनके जवान बेटा-बेटी हैं। अब उनका दिल आ गया है मरियम नाम की एक बहुत ही कमसिन, कम उम्र, अल्हड़ लड़की पे। और उस मरियम से शादी कराने का बीड़ा उठाती हैं फर्ज़ीना नाम की एक महिला, जिनका काम ही है लोगों की शादी करवाना, लड़का-लड़की का जोड़ा मिलवाना। अब जब मिलती हैं फर्ज़ीना सखावत बेग साहब से तो क्या माजरा होता है, देखते हैं हमलोग–
मिर्ज़ा जी जरा देखिए ये उमर की लकीर कहाँ-से-कहाँ तक चली जा रही है…। पहले तो मैं सौ बरस कहती थी, लेकिन अब अल्ला रखे…मैं जानती हूँ कि आप 120 बरस तक जवानी की बहार लूटेंगे! और नहीं तो क्या, आपके पोते और परपोतों के पोते आपके हाथों अल्ला को प्यारे होंगे। अरे इस बात का पूछना क्या, आपकी लौंडी किसी काम का बीड़ा उठाए और वो सिद्ध न हो! शादी-ब्याह कराना तो मेरा हुनर है–जिसे चाहूँ, जिससे चाहूँ चुटकियों में जोड़ा मिला दूँ। फिर आपके मामले में तो कोई अड़ंगा ही नहीं था। और आप तो जानते ही हैं कि मेरा और लड़की वालों का कितना मेल-जोल है। इसीलिए मैंने माँ, बेटी दोनों को लगाकर देखा। मरियम की अम्मा से मैंने कहा कि कहीं आते-जाते में खिड़की से झाँकते हुए साहबजादी को देख लिया होगा। तभी से मिर्ज़ा जी लट्टू हैं…हां…हां…। अरे बोलती क्या, सुनते ही खिल उठी। मैंने कहा कि भई मिर्ज़ा जी तो चाहते हैं कि आज ही मंगनी का छल्ला पहना दे और मिश्री की डल्ली मुँह लगा दें। सुनते ही राज़ी हो गई। बोली, ‘फर्ज़ीना बूआ आज से हमारी लड़की का स्याह सफ़ेद तुमको सौंपा! अह्ह…।’
आपने असलम साहब को दावत पे बुलाया है? बहुत अच्छे, बहुत अच्छे…तो क्यों न उसी दिन मरियम को भी खाने पे बुला लिया जाय, आपकी साहबजादी से मिल लेंगी, दोनों मेले देख आएँगी, और लौटते में आपके साथ चाय चाय पी लेंगी! दहेज की पूछ रहे थे न, अरे ना, ना करते हुए भी वो हज़ार, बारह सौ साल की आमदनी लेकर आएगी। हाँ…फिर गरीबी में पली-बढ़ी है। इस वक्त दो चपाती, उस वक्त दाल, चटोरी नहीं है। मिठाई-मेवा भी नहीं खाती! बताइए इससे घर के खर्च में बचत हुई कि नहीं, और पहनने, ओढ़ने, सुरमे, मिस्सी का शौक़ नहीं। बनाव, शृंगार से कोई सरोकार नहीं। ये भी किफ़ायत हुई और क्या लीजिए…!
मिर्ज़ा जी…मिर्ज़ा जी रुकिए, रुकिए आप उसकी जवानी से मत डरिए। अरे आप उसके मिज़ाज को नहीं जानते, यही तो उसमें ख़ास बात है। अपने उम्र के लड़कों से बला की नफ़रत करती है। जब देखो बड़े-बूढ़ों में उठे-बैठे। हाँ…हां, जवां मर्दों को देख के मुँह फेर लेती है, और तो और अभी चार महीने पहले निकाह से इनकार कर दिया। वजह क्या…दूल्हे मियाँ की उमर कुल 56 बरस है और निकाह के काग़ज़ात दस्तखत करने बिना ऐनक के बैठे थे। और मैं बताए देती हूँ मिर्ज़ा साहब। आप अपनी दाढ़ी मुंडा के या खिजाब-हिजाब लगाकर जवान बनने की कोशिश मत कीजिएगा। यहाँ तो दूल्हे मियाँ के ऐनक चढ़ी हो, तभी बन्नो को पसंद आए…!
अरे, क्या रखा है जवानी में…जरा चिकनी-चुपड़ी होती है।
अरे, मियाँ मैं आपकी बात नहीं कर रही, आपको कैसे समझाऊँ? आप इतनी कुबूल सूरत कि तस्वीर के लायक! माशाअल्लाह…भारी-भरकम, तनोतोर, सेहत के अच्छे। अरे, ये ज़ुकाम के आपने भली चलाई, ज़ुकाम तो बड़ी मुबारक बीमारी है। लोग इसकी दुआएँ करते हैं। हाँ, दिमाग की गंदगी बह जाती है, और रही खाँसी की बात, मेरी इतनी उमर होने को आई–मैंने आपकी जैसी रसीली, सुरीली खाँसी नहीं सुनी! और हाँ, मैं आपको बताना भूल गई मिर्ज़ा साहब कि साहबजादी ने आपको देखा है आते-जाते हुए! हाँ, तभी तो आपकी खूबसूरती, मर्दाना वजा की इतनी तारीफ़ कर रही थी।
मिर्ज़ा साहब मेरा एक मामला अटका पड़ा हुआ था। थोड़े रुपे मिल जाते तो बात बन जाती। नहीं तो बड़ा नुकसान हो जाएगा। मेहरबानी होगी आपके सदके जाऊँ। मजबूरी ही कुछ ऐसी थी कि आपके सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है। मि…मिर्ज़ा जी, मिर्ज़ा जी…अरे ये लौडी कुछ अर्ज कर रही थी…सुनते तो जाइए। मर, मुंडी कटे, महाकंजूस, मक्खीचूस…पत्थर में जोंक लगे…।
मैं कौन सा छोड़ने वाली हूँ…यहाँ से नहीं तो वहाँ से ले लूँगी…हाँ!
अरे, बाह…! बहुत बखूबी निभाया लवलीन जी ने फर्ज़ीना के इस किरदार को। हमने उनसे पूछा कि वो क्या सोचती हैं फर्ज़ीना के बारे में।
पहले तो मैं ये बताना चाहती हूँ कि ये एक्चुअली एक कन्वर्सेशन है–माइज़र, कंजूस और फर्ज़ीना के बीच। इसको हमलोग ने एक मोनोलॉग की तरह पेश किया है, और फर्ज़ीना कैरेक्टर इसलिए भी मज़ेदार है कि हमलोग आज कल बहुत सुनते हैं–शादी डॉट कॉम, फलाना डॉट कॉम। पर ये भी एक शादी डॉट कॉम कैरेक्टर ही है फर्ज़ीना! और मौलियर उसमें कॉमेडी बरकरार रखते हुए जो इतने सटीक कॉमेंट्स करते हैं–मौजूदा सामाजिक व्यवस्था पे, वो बहुत मज़ेदार है, और…मतलब उसको समझ नहीं आ रहा है कि वो उसकी ललो-चप्पो इतनी कर रही है कि बाज़ी मार ली जाए। और वो बढ़ता चला जा रहा है, उसको लग रहा है कि बात बन जाने वाली और अल्टीमेटली मिर्ज़ा जी मुकर जाते हैं पैसे देने से। मगर वो भी कोई कम नहीं है, उसी के घर में बैठकर उसको कोसते हुए चली जाती है!
तो ये मज़ेदार ट्विस्ट है कि पहले तो खूब चापलूसी करती है, मक्खन लगाती है और फिर…मतलब उसको टाइम नहीं लगता पलटने में और गाली देने में और चले जाने में। तो ये…और मौलियर कमेडिया देलार्ट का फार्म यूज़ करते थे, तो उसमें एक एकजागरटेड हो के भी सेंसटिविटी बरकरार रहती है। वो एक मज़ेदार रहता है।
तो दोस्तो, ये थी हमारी आज की प्रस्तुति। और अगली बार हमलोग मिलेंगे एक बहुत ही बेहतरीन अभिनेता से, इनका नाम है–मनोज पाहवा। आपलोगों से अनुरोध है कि आपलोग सब्सक्राइव कीजिए ‘नई धारा’ का यूट्यूब चैनल और देखते रहिए हमारे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पे अलग-अलग प्रोग्राम।
अच्छा, नमस्कार!