Pratidin Ek Kavita

चुनाव की चोट | काका हाथरसी

हार गए वे, लग गई इलेक्शन में चोट। 
अपना अपना भाग्य है, वोटर का क्या खोट? 
वोटर का क्या खोट, ज़मानत ज़ब्त हो गई। 
उस दिन से ही लालाजी को ख़ब्त हो गई॥ 
कह ‘काका’ कवि, बर्राते हैं सोते सोते। 
रोज़ रात को लें, हिचकियाँ रोते रोते॥

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

चुनाव की चोट | काका हाथरसी

हार गए वे, लग गई इलेक्शन में चोट।
अपना अपना भाग्य है, वोटर का क्या खोट?
वोटर का क्या खोट, ज़मानत ज़ब्त हो गई।
उस दिन से ही लालाजी को ख़ब्त हो गई॥
कह ‘काका’ कवि, बर्राते हैं सोते सोते।
रोज़ रात को लें, हिचकियाँ रोते रोते॥