Pratidin Ek Kavita

Pratidin Ek Kavita Trailer Bonus Episode 588 Season 1

Doosre Log | Manglesh Dabral

Doosre Log | Manglesh DabralDoosre Log | Manglesh Dabral

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दूसरे लोग | मंगलेश डबराल 

दूसरे लोग भी पेड़ों और बादलों से प्यार करते हैं
वे भी चाहते हैं कि रात में फूल न तोड़े जाएँ
उन्हें भी नहाना पसन्द है एक नदी उन्हें सुन्दर लगती है
दूसरे लोग भी मानवीय साँचों में ढले हैं
थके-मांदे वे शाम को घर लौटना चाहते हैं।
जो तुम्हारी तरह नहीं रहते वे भी रहते हैं यहाँ अपनी तरह से
यह प्राचीन नगर जिसकी महिमा का तुम बखान करते हो  
सिर्फ़ धूल और पत्थरों का पर्दा है
और भूरी पपड़ी की तरह दिखता यह सिंहासन
जिस पर बैठकर न्याय किए गए
इसी के नीचे यहाँ हुए अन्याय भी दबे हैं
सभ्यता का गुणगान करनेवालो
तुम अगर सध्य नहीं हो
तो तुम्हारी सभ्यता का क़द तुमसे बड़ा नहीं है।
एक लम्बी शर्म से ज़्यादा कुछ नहीं है इतिहास
आग लगानेवालो
इससे दूसरों के घर मत जलाओ
आग मनुष्य की सबसे पुरानी अच्छाई है
यह आत्मा में निवास करती है और हमारा भोजन पकाती है
अत्याचारियो
तुम्हें अत्याचार करते हुए बहुत दिन हो गए
जगह-जगह पोस्टरों अख़बारों में छपे तुम्हारे चेहरे कितने विकृत हैं
तुम्हारे मुख से निकल रहा है झाग
आर तुम जो कुछ कहते हो उससे लगता है
अभी नष्ट होनेवाला है बचाखुचा हमारा संसार।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।