Pratidin Ek Kavita

चल इंशा अपने गाँव में | इब्ने इंशा

यहाँ उजले उजले रूप बहुत
पर असली कम, बहरूप बहुत

इस पेड़ के नीचे क्या रुकना
जहाँ साये कम,धूप बहुत

चल इंशा अपने गाँव में
बेठेंगे सुख की छाओं में

क्यूँ तेरी आँख सवाली है ?
यहाँ हर एक बात निराली है

इस देस बसेरा मत करना
यहाँ मुफलिस होना गाली है

जहाँ सच्चे रिश्ते यारों के
जहाँ वादे पक्के प्यारों के

जहाँ सजदा करे वफ़ा पांव में
चल इंशा अपने गाँव में


What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

चल इंशा अपने गाँव में | इब्ने इंशा

यहाँ उजले उजले रूप बहुत
पर असली कम, बहरूप बहुत

इस पेड़ के नीचे क्या रुकना
जहाँ साये कम,धूप बहुत

चल इंशा अपने गाँव में
बेठेंगे सुख की छाओं में

क्यूँ तेरी आँख सवाली है ?
यहाँ हर एक बात निराली है

इस देस बसेरा मत करना
यहाँ मुफलिस होना गाली है

जहाँ सच्चे रिश्ते यारों के
जहाँ वादे पक्के प्यारों के

जहाँ सजदा करे वफ़ा पांव में
चल इंशा अपने गाँव में