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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
ख़ालीपन | विनय कुमार सिंह
माँ अंदर से उदास है
सब कुछ वैसा ही नहीं है
जो बाहर से दिख रहा है
वैसे तो घर भरा हुआ है
सब हंस रहे हैं
खाने की खुशबू आ रही है
शाम को फिल्म देखना है
पिताजी का नया कुर्ता
सबको अच्छा लग रहा है
लेकिन माँ उदास है.
बच्चा नौकरी करने जा रहा है
कई सालों से घर, घर था
अब नहीं रहेगा
अब माँ के मन के एक कोने में
हमेशा खालीपन रहेगा !