Pratidin Ek Kavita

मैं सबसे छोटी हूँ | सुमित्रानंदन पन्त

मैं सबसे छोटी होऊँ,
तेरा अंचल पकड़-पकड़कर

फिरूँ सदा माँ! तेरे साथ,
कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ!

बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात!

हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात!

अपने कर से खिला, धुला मुख,
धूल पोंछ, सज्जित कर गात,

थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात!

ऐसी बड़ी न होऊँ मैं
तेरा स्नेह न खोऊँ मैं,

तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्पृह, निर्भय,

कहूँ—दिखा दे चंद्रोदय!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

मैं सबसे छोटी हूँ | सुमित्रानंदन पन्त

मैं सबसे छोटी होऊँ,
तेरा अंचल पकड़-पकड़कर

फिरूँ सदा माँ! तेरे साथ,
कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ!

बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात!

हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात!

अपने कर से खिला, धुला मुख,
धूल पोंछ, सज्जित कर गात,

थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात!

ऐसी बड़ी न होऊँ मैं
तेरा स्नेह न खोऊँ मैं,

तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्पृह, निर्भय,

कहूँ—दिखा दे चंद्रोदय!