Pratidin Ek Kavita

बचपन की वह नदी | नासिरा शर्मा  

बचपन की वह नदी
जो बहती थी मेरी नसों में
जाने कितनी बार
उतारा है मैंने उसे अक्षरों में
पढ़ने वाले करते हैं शिकायत
यह नदी कहाँ है जिसका ज़िक्र है
अकसर आपकी कहानियों में?
कैसे कहूँ कि यादों  का भी एक सच होता है
जो वर्तमान में कहीं नज़र नहीं आता
वर्तमान का अतीत हो जाना भी
समय के बहने जैसा है
जैसे वह नदी बहती थी कभी पिघली चाँदी जैसी
अभी अलसाई सी पड़ी रहती है तलहटी में
शायद कल वह भी न हो
और ज़िक्र हो उसका सिंधु घाटी की तरह
 कोर्स की पुस्तक के किसी पन्ने पर
अतीत में बहती एक नदी की तरह।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

बचपन की वह नदी | नासिरा शर्मा

बचपन की वह नदी
जो बहती थी मेरी नसों में
जाने कितनी बार
उतारा है मैंने उसे अक्षरों में
पढ़ने वाले करते हैं शिकायत
यह नदी कहाँ है जिसका ज़िक्र है
अकसर आपकी कहानियों में?
कैसे कहूँ कि यादों का भी एक सच होता है
जो वर्तमान में कहीं नज़र नहीं आता
वर्तमान का अतीत हो जाना भी
समय के बहने जैसा है
जैसे वह नदी बहती थी कभी पिघली चाँदी जैसी
अभी अलसाई सी पड़ी रहती है तलहटी में
शायद कल वह भी न हो
और ज़िक्र हो उसका सिंधु घाटी की तरह
कोर्स की पुस्तक के किसी पन्ने पर
अतीत में बहती एक नदी की तरह।