Pratidin Ek Kavita

मुझे अब डर नहीं लगता | मोहसिन नक़वी

किसी के दूर जाने से
तअ'ल्लुक़ टूट जाने से
किसी के मान जाने से
किसी के रूठ जाने से
मुझे अब डर नहीं लगता
किसी को आज़माने से
किसी के आज़माने से
किसी को याद रखने से
किसी को भूल जाने से
मुझे अब डर नहीं लगता
किसी को छोड़ देने से
किसी के छोड़ जाने से
ना शम्अ' को जलाने से
ना शम्अ' को बुझाने से
मुझे अब डर नहीं लगता
अकेले मुस्कुराने से
कभी आँसू बहाने से
ना इस सारे ज़माने से
हक़ीक़त से फ़साने से
मुझे अब डर नहीं लगता
किसी की ना-रसाई* से (*पहुंच न होना)
किसी की पारसाई* से (*साधुता)
किसी की बेवफ़ाई से
किसी दुख इंतिहाई से

मुझे अब डर नहीं लगता
ना तो इस पार रहने से
ना तो उस पार रहने से
ना अपनी ज़िंदगानी से
ना इक दिन मौत आने से
मुझे अब डर नहीं लगता


What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

मुझे अब डर नहीं लगता | मोहसिन नक़वी

किसी के दूर जाने से
तअ'ल्लुक़ टूट जाने से
किसी के मान जाने से
किसी के रूठ जाने से
मुझे अब डर नहीं लगता
किसी को आज़माने से
किसी के आज़माने से
किसी को याद रखने से
किसी को भूल जाने से
मुझे अब डर नहीं लगता
किसी को छोड़ देने से
किसी के छोड़ जाने से
ना शम्अ' को जलाने से
ना शम्अ' को बुझाने से
मुझे अब डर नहीं लगता
अकेले मुस्कुराने से
कभी आँसू बहाने से
ना इस सारे ज़माने से
हक़ीक़त से फ़साने से
मुझे अब डर नहीं लगता
किसी की ना-रसाई* से (*पहुंच न होना)
किसी की पारसाई* से (*साधुता)
किसी की बेवफ़ाई से
किसी दुख इंतिहाई से

मुझे अब डर नहीं लगता
ना तो इस पार रहने से
ना तो उस पार रहने से
ना अपनी ज़िंदगानी से
ना इक दिन मौत आने से
मुझे अब डर नहीं लगता