Pratidin Ek Kavita

घर | अज्ञेय

मेरा घर 
दो दरवाज़ों को जोड़ता 
एक घेरा है 
मेरा घर 
दो दरवाज़ों के बीच है 
उसमें 
किधर से भी झाँको 
तुम दरवाज़े से बाहर देख रहे होंगे 
तुम्हें पार का दृश्य दिख जाएगा 
घर नहीं दिखेगा। 

मैं ही मेरा घर हूँ।
मेरे घर में कोई नहीं रहता 
मैं भी क्या 
मेरे घर में रहता हूँ 
मेरे घर में 
जिधर से भी झाँको...

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

घर | अज्ञेय

मेरा घर
दो दरवाज़ों को जोड़ता
एक घेरा है
मेरा घर
दो दरवाज़ों के बीच है
उसमें
किधर से भी झाँको
तुम दरवाज़े से बाहर देख रहे होंगे
तुम्हें पार का दृश्य दिख जाएगा
घर नहीं दिखेगा।

मैं ही मेरा घर हूँ।
मेरे घर में कोई नहीं रहता
मैं भी क्या
मेरे घर में रहता हूँ
मेरे घर में
जिधर से भी झाँको...