Pratidin Ek Kavita

बारिश की भाषा | शहंशाह आलम 

उसकी देह कितनी बातूनी लग रही है
जो बारिश से बचने की ख़ातिर खड़ी है
जामुन पेड़ के नीचे जामुनी रंग के कपड़े में
‘जामुन ख़रीदकर घर लाए कितने दिन हुए’
हज़ारों मील तक बरस रही बारिश के बीच
वह लड़की क्या ऐसा सोच रही होगी
या यह कि इस शून्यता में जामुन का पेड़
बारिश से उसको कितनी देर बचा पाएगा
बारिश किसी नाव की तरह
बाँधी नहीं जा सकती, यह सच है
जामुन का पककर गिरना भी
बाँधा नहीं जा सकता
बारिश को रुकना होता है तो ख़ुद रुक जाती है
बरसना होता है तो ख़ुद बरसने लगती है घनघोर
तभी बारिश है लड़की है जामुन का पेड़ है 
तभी बारिश की भाषा है मेरे कानों तक सुनाई देती।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

बारिश की भाषा | शहंशाह आलम

उसकी देह कितनी बातूनी लग रही है
जो बारिश से बचने की ख़ातिर खड़ी है
जामुन पेड़ के नीचे जामुनी रंग के कपड़े में
‘जामुन ख़रीदकर घर लाए कितने दिन हुए’
हज़ारों मील तक बरस रही बारिश के बीच
वह लड़की क्या ऐसा सोच रही होगी
या यह कि इस शून्यता में जामुन का पेड़
बारिश से उसको कितनी देर बचा पाएगा
बारिश किसी नाव की तरह
बाँधी नहीं जा सकती, यह सच है
जामुन का पककर गिरना भी
बाँधा नहीं जा सकता
बारिश को रुकना होता है तो ख़ुद रुक जाती है
बरसना होता है तो ख़ुद बरसने लगती है घनघोर
तभी बारिश है लड़की है जामुन का पेड़ है
तभी बारिश की भाषा है मेरे कानों तक सुनाई देती।