Pratidin Ek Kavita

हम हैं ताना, हम हैं बाना |  उदय प्रकाश 

हम हैं ताना, हम हैं बाना।
हमीं चदरिया, हमीं जुलाहा, हमीं गजी, हम थाना॥ हम हैं ताना''॥
नाद हमीं, अनुनाद हमीं, निःशब्द हमीं गंभीरा,
अंधकार हम, चाँद-सूरज हम, हम कान्हा, हम मीरा।
हमीं अकेले, हमीं दु्केले, हम चुग्गा, हम दाना॥ हम हैं ताना'''॥
मंदिर-महजिद, हम. गुरुद्वारा, हम मठ, हम बैरागी
हमीं पुजारी, हमीं देवता, हम कीर्तन, हम रागी।
आखत-रोली, अलख-भभूती, रूप धरें हम नाना॥ हम हैं ताना''॥
मूल-फूल हम, रुत बादल हम, हम माटी, हम पानी
हमीं जहूदी-शेख-बरहमन, हरिजन हम खिस्तानी।
पीर-अघोरी, सिद्ध-औलिया, हमीं पेट, हम खाना॥ हम हैं ताना॥
नाम-पता, ना ठौर-ठिकाना, जात-धरम ना कोई
मुलक-खलक, राजा-परजा हम, हम बेलन, हम लोई।
हमही दुलहा, हमीं बराती, हम फूँका, हम छाना॥ हम हैं ताना''॥

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

हम हैं ताना, हम हैं बाना | उदय प्रकाश

हम हैं ताना, हम हैं बाना।
हमीं चदरिया, हमीं जुलाहा, हमीं गजी, हम थाना॥ हम हैं ताना''॥
नाद हमीं, अनुनाद हमीं, निःशब्द हमीं गंभीरा,
अंधकार हम, चाँद-सूरज हम, हम कान्हा, हम मीरा।
हमीं अकेले, हमीं दु्केले, हम चुग्गा, हम दाना॥ हम हैं ताना'''॥
मंदिर-महजिद, हम. गुरुद्वारा, हम मठ, हम बैरागी
हमीं पुजारी, हमीं देवता, हम कीर्तन, हम रागी।
आखत-रोली, अलख-भभूती, रूप धरें हम नाना॥ हम हैं ताना''॥
मूल-फूल हम, रुत बादल हम, हम माटी, हम पानी
हमीं जहूदी-शेख-बरहमन, हरिजन हम खिस्तानी।
पीर-अघोरी, सिद्ध-औलिया, हमीं पेट, हम खाना॥ हम हैं ताना॥
नाम-पता, ना ठौर-ठिकाना, जात-धरम ना कोई
मुलक-खलक, राजा-परजा हम, हम बेलन, हम लोई।
हमही दुलहा, हमीं बराती, हम फूँका, हम छाना॥ हम हैं ताना''॥