कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
साहिल और समंदर | सरवर
ऐ समंदर
क्यों इतना शोर करते हो
क्या कोई दर्द अंदर रखते हो
यूं हर बार साहिल से तुम्हारा टकराना
किसी के रोके जाने के खिलाफ तो नहीं
पर मुझको तुम्हारी लहरें याद दिलाती हैं
कोशिश से बदल जाते हैं हालात
तुमने ढाला है साहिलों को
बदला है उनके जबीनों को
मुझको ऐसा मालूम पड़ता है
कि तुम आकर लेते हो
बौसा साहिलों के हज़ार
ये मोहब्बत है तुम्हारी उस साहिल के लिए
जो छोड़ता नहीं है तुम्हारा साथ
काश इंसान भी साहिल और समंदर होता
कितने भी बिगड़ते हालात
फिर भी होते साथ
साहिल और समंदर