Pratidin Ek Kavita

कल्पवृक्ष | दामोदर खड़से 

कविता
भीतर से होते हुए 
जब शब्दों में ढलती है
भीतरी ठिठुरन
ऊष्मा के स्पर्श से
प्राणवान हो उठती है 
ज्यों थकी हुई प्रतीक्षा
बेबस प्यास
दुत्कारी आशा
अनायास ही
किसी पुकार को थाम लेती है
शब्द सार्थक हो उठते हैं
और एकांत भी 
सान्निध्य से भर जाते हैं
कविता
कल्पवृक्ष है।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

कल्पवृक्ष | दामोदर खड़से

कविता
भीतर से होते हुए
जब शब्दों में ढलती है
भीतरी ठिठुरन
ऊष्मा के स्पर्श से
प्राणवान हो उठती है
ज्यों थकी हुई प्रतीक्षा
बेबस प्यास
दुत्कारी आशा
अनायास ही
किसी पुकार को थाम लेती है
शब्द सार्थक हो उठते हैं
और एकांत भी
सान्निध्य से भर जाते हैं
कविता
कल्पवृक्ष है।