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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
जीवन बचा है अभी | शलभ श्रीराम सिंह
जीवन बचा है अभी
ज़मीन के भीतर नमी बरक़रार है
बरकरार है पत्थर के भीतर आग
हरापन जड़ों के अन्दर साँस ले रहा है!
जीवन बचा है अभी
रोशनी खाकर भी हरकत में हैं पुतलियाँ
दिमाग सोच रहा है जीवन के बारे में
ख़ून दिल तक पहुँचने की कोशिश में है!
जीवन बचा है अभी
सूख गए फूल के आसपास है ख़ुशबू
आदमी को छोड़कर भागे नहीं हैं सपने
भाषा शिशुओं के मुँह में आकार ले रही है!
जीवन बचा है अभी!