कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
एक अविश्वसनीय सपना - विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
एक दिन उसने सपना देखा
बिना वीसा बिना पासपोर्ट
सारी दुनिया में घूम रहा है वह
न कोई सरहद, न कोई चेकपोस्ट
समुद्रों और पहाड़ों और नदियों और जंगलों से
गुज़रते हुए उसने अद्भुत दृश्य देखे...
आकाश के, बादलों और रंगों के...
अक्षत यौवना प्रकृति उसके सामने थी...
निर्भय घूम रहे थे पशु पक्षी।
पुरुष स्त्री बच्चे
क्या शहर थे वे और कैसे गाँव
कोई राजा कोई सिपाही
कोई जेल कोई बन्दूक नहीं
चारों ओर खिले हुए चेहरे
और उगते हुए अँखुए
और उड़ती हुई तितलियाँ
उसे अचरज हुआ
उसे सपने में भी लगा यह सपना है
तभी एक धमाका हुआ ज़ोर का
एक तानाशाह की तलवार चमकी
वह काँपता हुआ उठ बैठा
अब वह फिर कोशिश कर रहा था
उसी सपने में लौटने की।