Pratidin Ek Kavita

संयोग | शहंशाह आलम

यह संयोगवश नहीं हुआ
कि मैंने पुरानी साइकिल से
पुराने शहरों की यात्राएं कीं
ख़ानाबदोश उम्मीदों से भरी
इस यात्रा में संयोग यह था
कि तुम्हारा प्रेम साथ था मेरे
तुम्हारे प्रेम ने
मुझे अकेलेपन से
मुठभेड़ नहीं होने दिया
एक संयोग यह भी था
कि मेरा शहर जूझ रहा था
अकेलेपन की उदासी से
तुम्हारे ही इंतज़ार में
और मेरे शहर का नाम
तुमने खजुराहो रखा था
प्रेम की पवित्रता में बहकर।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

संयोग | शहंशाह आलम

यह संयोगवश नहीं हुआ
कि मैंने पुरानी साइकिल से
पुराने शहरों की यात्राएं कीं

ख़ानाबदोश उम्मीदों से भरी
इस यात्रा में संयोग यह था
कि तुम्हारा प्रेम साथ था मेरे

तुम्हारे प्रेम ने
मुझे अकेलेपन से
मुठभेड़ नहीं होने दिया

एक संयोग यह भी था
कि मेरा शहर जूझ रहा था
अकेलेपन की उदासी से
तुम्हारे ही इंतज़ार में

और मेरे शहर का नाम
तुमने खजुराहो रखा था
प्रेम की पवित्रता में बहकर।