Pratidin Ek Kavita

साथ चलते चलते तुम | रश्मि  पाठक

  तुम बहुत आगे
  निकल गए
  जाने कितना समय
  लगेगा तुम तक
  पहुँचने में
  सोचती थी कैसे कटेंगे
   ये पल छिन
   बीत गया एक
   बरस तुम्हारे बिन
   बंद हुए अब मन के
   सारे द्वार
   रुक गया है मेरा
   प्रति स्पंदन
   रह रह कर टीसती
  है वेदना
  और बूँद बूँद आँखों के
  कोनों से झड़ती
  है  चुपचाप
  तुम नहीं हो मेरे पास

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

साथ चलते चलते तुम | रश्मि पाठक

तुम बहुत आगे
निकल गए
जाने कितना समय
लगेगा तुम तक
पहुँचने में
सोचती थी कैसे कटेंगे
ये पल छिन
बीत गया एक
बरस तुम्हारे बिन
बंद हुए अब मन के
सारे द्वार
रुक गया है मेरा
प्रति स्पंदन
रह रह कर टीसती
है वेदना
और बूँद बूँद आँखों के
कोनों से झड़ती
है चुपचाप
तुम नहीं हो मेरे पास