Pratidin Ek Kavita

दुआ | मनमीत नारंग

कतरनें प्यार की 
जो फेंक दीं थी बेकार समझकर 
चल चुनें तुम और मैं
हर टुकड़ा उस नेमत का 
और बुनें एक रज़ाई 
छुप जाएं सभी उसमें आज 
तुम मेरे सीने पे मैं उसके कंधे पर 
सिर रखकर रो लें ज़रा 
कुछ हँस दें ज़रा 
यूँ ही ज़िंदगी  गुज़र बसर हो जाएगी 
शायद यह दुनिया बच जाएगी 

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

दुआ | मनमीत नारंग

कतरनें प्यार की
जो फेंक दीं थी बेकार समझकर
चल चुनें तुम और मैं
हर टुकड़ा उस नेमत का
और बुनें एक रज़ाई
छुप जाएं सभी उसमें आज
तुम मेरे सीने पे मैं उसके कंधे पर
सिर रखकर रो लें ज़रा
कुछ हँस दें ज़रा
यूँ ही ज़िंदगी गुज़र बसर हो जाएगी
शायद यह दुनिया बच जाएगी