Pratidin Ek Kavita

टहनियाँ | जयप्रकाश कर्दम

काटा जाता है जब भी कोई पेड़
बेजान हो जाती हैं टहनियां बिना कटे ही
पेड़ है क्योंकि टहनियां हैं
टहनियां हैं क्योंकि पेड़ है
अर्थहीन हैं एक दूसरे के बिना
पेड़ और टहनियां ठूंठ हो जाता है पेड़
टहनियों के अभाव में
टहनियां हैं पेड़ का कुनबा
पेड़ ने देखा है
अपने कुनबे को बढते हुए
टहनियों ने देखा है पेड़ को कटते हुए
कटकर गिरने से पहले
अंतिम शंवास तक संघर्ष करते हुए
टहनियां उदास हैं कि पेड़ कट गया
पेड़ उदास है कि टहनियां कटेंगी
उन पर भी चलेगी कुल्हाड़ी
कटते रहेंगे कब तक पेड़
ज़रूरतों के नाम पर
सूखते रहेंगे स्रोत टहनियों के
क्यों ज़िंदा नहीं रह सकता पेड़
अपनी टहनियों के साथ।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

टहनियाँ | जयप्रकाश कर्दम

काटा जाता है जब भी कोई पेड़
बेजान हो जाती हैं टहनियां बिना कटे ही
पेड़ है क्योंकि टहनियां हैं
टहनियां हैं क्योंकि पेड़ है
अर्थहीन हैं एक दूसरे के बिना
पेड़ और टहनियां ठूंठ हो जाता है पेड़
टहनियों के अभाव में
टहनियां हैं पेड़ का कुनबा
पेड़ ने देखा है
अपने कुनबे को बढते हुए
टहनियों ने देखा है पेड़ को कटते हुए
कटकर गिरने से पहले
अंतिम शंवास तक संघर्ष करते हुए
टहनियां उदास हैं कि पेड़ कट गया
पेड़ उदास है कि टहनियां कटेंगी
उन पर भी चलेगी कुल्हाड़ी
कटते रहेंगे कब तक पेड़
ज़रूरतों के नाम पर
सूखते रहेंगे स्रोत टहनियों के
क्यों ज़िंदा नहीं रह सकता पेड़
अपनी टहनियों के साथ।