Pratidin Ek Kavita

खाली घर | चंद्रकांता 

सब कुछ वही था
सांगोपांग
घर ,कमरे,कमरे की नक्काशीदार छत
नदी पर मल्लाहों की इसरार भरी पुकार 
 सडक पर हंगामों के बीच
 दौड़ते- भागते बेतरतीब हुजूम के हुजूम !
 और आवाज़ों के कोलाज में खड़ा खाली घर!
बोधिसत्व सा,निरुद्वेग,निर्पेक्ष समय
सुन रहा था उसका बेआवाज़
झुनझुने की तरह बजना!
देख रहा था
गोद में चिपटाए दादू के झाड़फ़ानूस 
पापा की कद्दावार चिथड़ा तस्वीर,
इधर उल्टे -सीधे खिलौनों के छितरे ढेर!
उधर ताखे पर धूल-मैल से बदरंग हुई
बाँह भर चूड़ियाँ 
काल के गह्वर में गुम हुई अल्हड़  प्रेमिका की!
अनन्त दूरियों और अगम्य विस्तारों में
काँप रहा है बियाबान !
वक्त़ के मलबे में दबा
 इतिहास का करुण वर्तमान!
कैसा अथक इंतज़ार?
 बाहर के कानफाडू शोर में ढूँढ रहा है
ग़ायब होती भीतर की
शब्दातीत मौलिक ध्वनियाँ !

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

खाली घर | चंद्रकांता

सब कुछ वही था
सांगोपांग
घर ,कमरे,कमरे की नक्काशीदार छत
नदी पर मल्लाहों की इसरार भरी पुकार
सडक पर हंगामों के बीच
दौड़ते- भागते बेतरतीब हुजूम के हुजूम !
और आवाज़ों के कोलाज में खड़ा खाली घर!
बोधिसत्व सा,निरुद्वेग,निर्पेक्ष समय
सुन रहा था उसका बेआवाज़
झुनझुने की तरह बजना!
देख रहा था
गोद में चिपटाए दादू के झाड़फ़ानूस
पापा की कद्दावार चिथड़ा तस्वीर,
इधर उल्टे -सीधे खिलौनों के छितरे ढेर!
उधर ताखे पर धूल-मैल से बदरंग हुई
बाँह भर चूड़ियाँ
काल के गह्वर में गुम हुई अल्हड़ प्रेमिका की!
अनन्त दूरियों और अगम्य विस्तारों में
काँप रहा है बियाबान !
वक्त़ के मलबे में दबा
इतिहास का करुण वर्तमान!
कैसा अथक इंतज़ार?
बाहर के कानफाडू शोर में ढूँढ रहा है
ग़ायब होती भीतर की
शब्दातीत मौलिक ध्वनियाँ !