कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
अंधेरे का स्वप्न | प्रियंका
मैं उस ओर जाना चाहती हूँ
जिधर हो नीम अँधेरा !
अंधेरे में बैठा जा सकता है
थोड़ी देर सुकून से
और बातें की जा सकती हैं
ख़ुद से
थोड़ी देर ही सही
जिया जा सकता है
स्वयं को !
अंधेरे में लिखी जा सकती है कविता
हरे भरे पेड़ की
फूलों से भरे बाग़ीचे की ओर
उड़ती हुई तितलियों की
अंधेरे में देखा जा सकता है सपना
तुम्हारे साथ होने का
तुम्हारे स्पर्श की,
अनुभूतियों के स्वाद चखने का
सफ़ेद चादरों को रंगने का
और फिर तुम्हारे लौट जाने पर
उदास होने का !
मैं उस ओर जाना चाहती हूँ
जिधर हो नीम अँधेरा !
क्यूँकि अंधेरे में,
दिखाई नहीं देती उदासियाँ !