Pratidin Ek Kavita

स्मृति पिता | वीरेन डंगवाल

एक शून्य की परछाईं के भीतर 
घूमता है एक और शून्य 
पहिये की तरह
मगर कहीं न जाता हुआ 

फिरकी के भीतर घूमती
एक और फिरकी
शैशव के किसी मेले की

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

स्मृति पिता | वीरेन डंगवाल

एक शून्य की परछाईं के भीतर
घूमता है एक और शून्य
पहिये की तरह
मगर कहीं न जाता हुआ

फिरकी के भीतर घूमती
एक और फिरकी
शैशव के किसी मेले की