कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
समय नहीं लगता है | अजेय जुगरान
आज के कल हो जाने में
कल के कभी नहीं होने में
समय नहीं लगता है।
अक्सर इस छोटे से जीवन में
अवसर को पाकर खोने में
समय नहीं लगता है।
अनुकूल की प्रतीक्षा में
प्रतिकूल के आ जाने में
समय नहीं लगता है।
शुभ मुहूर्त का मंतव्य बनाते
दृश्य गंतव्य अमूर्त होने में
समय नहीं लगता है।
इस पल में ही सब बीज हैं
इस पल में ही सब हल हैं
आज में ही सब तीज हैं
शुभमय यही समय है
सोकर इसे गवाँ देने में
समय नहीं लगता है।
किंकर्तव्यमूढ़ से मूढ़ हो जाने में
मुखर के गौण हो जाने में
अगूढ़ के मौन हो जाने में
प्रतिक्षित पल से छले जाने में
समय के असमय हो जाने में
आज के कल हो जाने में
कल के कभी नहीं होने में
समय नहीं लगता है।